आज बहुत सी यादों को अलविदा कहने का दिन था, मसलन हमारे कॉलेज की लाईब्रेरी को ही ले लीजिए जिसमें न जाने कितने सारे अच्छे पल बिताए हैं, तीन साल तक पल-पल उसके प्यार की सुगबुगाहट को महसूस किया है, कितने सारे एग्जाम्स के नोट्स वहीं पर कलम घिस-घिसकर तैयार किए हैं, कल अपनी इस पुरानी जगह से एक नए रूम में शिफ्ट हो जाएगी। आज आखिरी दिन उसने(लाईब्रेरी ने) बड़ी बेरुखी दिखाई। खैर यह वही कॉलेज है जिसमें प्रो. ओम गुप्ता, महेश सर, शशि नैयर सर, धर सर, अमिय मोहन सर, और पवन सर जैसे दिग्गजों ने जहां हमारी प्रतिभा को तराशा वहीं पूजा मैम, शिखा मैम, हनी मैम, सुप्रज्ञा मैम, सिल्की मैम व किरण मैम के स्नेह ने हमेशा हमारे लक्ष्य की राह पर हमें अडिग रखा। इसी कॉलेज में अक्षर-अक्षर जोड़ कर हमने टाइप करना और लिखना सीखा, आशुतोष और शुक्ला जैसों के साथ बहुत से गंभीर मुद्दों पर जमकर बहसें भी हुईं। जिंदगी के बहुत से सबक जिनसे शायद भविष्य में दो-चार होना पड़े, वे भी हमें इसी दौरान सीखने को मिले। तो जनाब आज इतनी सारी यादों को अलविदा कहने का दिन था, खैर ऑफिश्यल अनाउंसमेंट(फेरवेल) में अभी समय है, लेकिन मेरे इस दिल पर तो क...
आज सुबह दफ्तर के लिये घर से निकला तो लेट हो गया था, तो सोचा कि चलो आटो ले लिया जाये। एक बार पर्स खोलकर चेक किया कि पर्याप्त पैसे हैं भी या नहीं। पर्स के अंदर से पचास रुपये का एक नोट बाहर झांक रहा था, उसकी मुस्कुराहट देखकर दिल खुश हो गया और सडक से गुजर रहे आटोरिक्शा की तरफ हाथ हिला दिया। एक एक करके आठ आटो रुके और चले गये लेकिन गंतव्य पर पहुंचाने के लिये कोई भी दिलेर तैयार नहीं हुआ। सुबह का वक्त था और दिल्ली का पारा जान निकाले दे रहा था। खैर एक महाशय जैसे तैसे करके रुके और दफ्तर पहुंचाने के लिये तैयार हो गये। मीटर आन था, सब कुछ दुरुस्त था। मुझे सुकून मिला। दफ्तर आया तो मैने उन्हे पचास का नोट थमा दिया। मीटर में चालीस रुपये किराया बना था। आटो वाले ने नोट हाथ में लिया, उसकी तह को तफसील से खोला, फिर नोट को बारीकी से जांचा। अचानक उसके चेहरे पर वैसा भाव उभर आया जैसे क्लू मिल जाने पर पेशेवर डिटेक्टिव के चेहरे पर उभर आता है। उसने नोट मुझे वापस कर दिया और बोला बीच में से फटा हुआ है, नहीं चलेगा, सवारी स्वीकार नहीं करेगी। मैने कहा बंधुवर मेरे पास यही जमापूंजी है आप स्वीकार कर लीजिये रास्ते ...