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Showing posts from October, 2009

गलियों में बसी मेरी दिल्ली

जैसे रात के घने सन्नाटे के बाद प्रभात के आदित्य की पहली किरणें धरती का आलिंगन करती हैं, कुछ उसी तरह का अहसास मुझे इतने दिनों के बाद कलम उठाते हुए हो रहा है। बहुत से किस्से हैं बांटने के लिए, आप सोच रहे होंगे कि दिल्ली की गलियों का मेरे किस्सों से क्या संबंध? लेकिन पुरानी दिल्ली की गलियां कहीं न कहीं मुझे सम्मोहित करती रही हैं, कारण शायद यह भी कि यह मुझे मेरे शहर **** की याद तो दिलाती ही हैं लेकिन न जाने क्यों हर बार किसी न किसी तरह से मुझे एक किस्सा भी दे जाती हैं।     आप यह जानने को उत्सुक होंगे कि आखिर वो कौन सी वजह रही जो मुझे इतने दिन कलम उठाने से दूर रखे रही? वजह कुछ बड़ी थी, इस सेमेस्टर में हमें ईवेन्ट प्लान करने होते हैं। मैं कॉरपोरेट ईवेंटस में विश्वास नहीं रखता, इसलिए सोचा कि क्यों न कुछ कलात्मक ईवेंट प्लान करूं! नतीजा सामने था, फोटोग्राफी एक्जीवीशन। शुरुआत में सोचा था कि खुद का पैसा लगाकर इसे कामयाब बनाने की कोशिश करेंगे, लेकिन फिर वीडियोकॉन, बीएचईएल, और ऑलटरनेटिव पैट्रोलियम टेक्रोलॉजिस से हमे मदद मिल गई। मदद भी इतनी मिली कि इस ईवेन्ट को हम पूरे दिल्ली के लेवल पर आयोजित क