वैसे तो यह टाइटल युवा कथाकार अनुज जी के कहानी संग्रह और उसमें पहली कहानी का है, लेकिन इस समय जो किस्सा मैं यहां कहने जा रहा हूं, उसके लिए मुझे यह बिल्कुल सटीक लगा। जिन लोगों ने यह कहानी पढ़ी है वो समझ ही गए होंगे कि मैं राजधानी के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के 'विद्रोही जीÓ की बात करने जा रहा हूं। अनुज जी की कहानी भी पीडीएफ के रूप में इस आलेख के आखिर में दे रहा हूं।
रमाशंकर यादव विद्रोही को जेएनयू में गोपालन जी की लाईब्रेरी कैंटीन में बैठे हुए अक्सर देखा जा सकता है। बहुत से नए आने वाले लोग उन्हे पागल के तौर पर ही पहचानते हैं, तो कुछ वामपंथी मित्रों के लिए वे एक ऐसे शख्स हैं जो दुनिया बदलने की कोशिश में दुनिया से ही बेगाने हो गए। विद्रोही से पिछले महीने तक मेरा कोई परिचय नहीं था, उनके बारे में जानने की उत्सुकता तो बहुत हुई, पर कभी उनसे पूछने का साहस नहीं जुटा पाया। अभी कल रात को ही, बीबीसी की वेबसाइट पर उनकी तस्वीर देख और नाम पढ़कर चौंक सा गया। धक्का सा लगा कि यही वो विद्रोही जी हैं, जिनके बारे में काफी कुछ सुना व पढ़ा है। खबर यह है कि पिछले हफ्ते विश्वविद्यालय प्रशासन ने अभद्र भाषा के प्रयोग के चलते तीन बरस तक विद्रोही जी के जेएनयू में प्रवेश पर रोक लगा दी है। सुनकर काफी बुरा तो लगा, क्योंकि विद्रोही की न तो आजीविका का कोई साधन है और न इस महानगर में रहने का कोई ठिकाना।
रमाशंकर विद्रोही, वैसे तो उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर के रहने वाले हैं, और युवावस्था में ही जेएनयू आ गए थे, यह कोई आज से तीस बरस पहले की बात है। जेएनयू के राजनैतिक माहौल में पढ़कर विद्रोही भी वामपंथी हो गए और एसएफआई के सदस्य बन बैठे। आप यकीन नहीं मानेंगे लेकिन इस विक्षिप्त से दिखने वाले शख्स ने हिंदी साहित्य में एमफिल तक पढ़ाई की हुई है। पीएचडी में आए तो एक ऐसी महत्वाकांक्षी मनमोहिनी से दिल लगा बैठे कि पीएचडी तो अधूरी रह ही गई, दीन-दुनिया से भी बेगाने हो गए। वैसे हिंदी के इतने मेघावी छात्र रहे विद्रोही जी को कविता रचने का बहुत शौक है, और बीबीसी के अनुसार अब तक उनके पास चार सौ कविताएं ऐसी हैं जिन्हे अगर छपवा दिया जाए तो अच्छा खासा संकलन तैयार हो सकता है। कुछ समय पहले तक विद्रोही जी से जेएनयू में कविता सुन पाना मुमकिन था, लेकिन अब इसके आसार धूमिल ही नजर आते हैं।
इधर सुन रहे हैं कि बीते तीन बरसों से बंद पढ़े जेएनयू छात्र संघ के चुनावों को दोबारा शुरु करवाने के लिए सारे छात्र तगड़ा आंदोलन करने की फिराक में हैं। तो ऐसे में कुछ उम्मीद तो जरूर जगती है कि निरंकुश प्रशासन के तानाशाही कदमों पर एक मजबूत छात्र संघ कुछ अंकुश तो लगा ही देगा।
यहां अनुज जी की कहानी भी अटैच कर रहा हूं, साथ ही बीबीसी की उस खबर का लिंक भी दे रहा हूं। कौन जानता है कि कभी जेएनयू में यूं ही घूमते हुए विद्रोही जी से फिर मिलना हो जाए।
ताजा अपडेट
आज तीन सितंबर 2010 को छात्र समुदाय के प्रबल प्रतिरोध के आगे हार मानते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन ने विद्रोही जी का रस्टीकेशन ऑडर निरस्त करते हुए उन पर लगे सभी आरोप वापिस ले लिए। अब विद्रोही जी से जेएनयू में मिलना संभव हो सकेगा।
यहां इस मसले पर विद्रोही जी का आत्मकथ्य दे रहा हूं।
vidrohi ji ke baare main jaankar bahut afsos hua.kis tarah ek mahaan kavi duniyaa ke andhere main kho raha hain, ummeed karti hun ki unhe apne ghar se na nikaala jaaye,
ReplyDeletevidrohi ji ki kavitai padhi, dil aur deemag ko jhakjhor dene waali thi.
mere blog par aakar meri rachna padhne ke liye shukriya.
title nahi samjha isliye likha nahi waise sochti hun anjaani raahe title kaisa rahega.
अनजानी राहें को अगर, 'अनजानी होती राहें' कर दिया जाए तो अच्छा लगेगा। जल्दी ही विद्रोही जी से मिलकर उनका साक्षात्कार करने की कोशिश करूंगा।
ReplyDeletemaine aapke suggestion ke hisaab se tile rakh diya hain, thanks
ReplyDeleteaakhir chatro ki mehnat rang laayi mujhe behad khushi hain ki vidrohi ji ke upar lage saare aarop waapis le liye gaye.
ReplyDeleteशुक्रिया शीतल जी, हम सभी के लिए यह खुशी का मौका इसलिए भी है कि जेएनयू का जनवादी स्वरूप तमाम हमलों के बावजूद भी अभी भी प्रबल भूमिका अदा कर पाने में सक्षम है।
ReplyDeleteis jaankaari ke liye shukriya.....
ReplyDeleteMere blog par bhi sawaagat hai aapka.....
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kya baat hain pallav ji badi lambi khamoshi hain aapki taraf se,yeh khamoshi kab tutegi aur hame koi nai cheez padhane ko milegi.
ReplyDeleteनहीं-नहीं शीतल जी, यह खामोशी नहीं है बस आलस है। बहुत से प्लॉट दिमाग में भरे हुए हैं लेकिन जब टिपटिपाने का समय आता है तो आलस घेर लेता है। आज रात तक ही एक पोस्ट डालने की कोशिश करूंगा।
ReplyDeletehaan ye baat sahi hain ki kabhi-kabhi aalas gher leta hain aur likhne ka man nahi hota hain.
ReplyDeletedelhi ke haal wakiyi behaal hain.... waise baki jagaho ke haal bhi koi khas behtar nahi hain.
lagta hain aapka aalas abhi tak tuta nahi,chaliye deepavali ke baad aaram se likhiyega.
ReplyDeleteAapko bhi Dhanteres ki aur Deepavali ki hardik subhkamnai, aap bhi khub mithaiya khaye aur pathake chodne ke baare main kuch nahi kahungi,kyunki main pathake chodhna pasand nahi karti.haan mithaiya khana khub pasand karti hun.
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