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Showing posts from April, 2012

लंबा वनवास

इल्या रेपिन की पेंटिग ''ब्राइड'' एक लंबे वनवास के बाद राम को अयोध्या नगरी लौट कर जो अनुभूति हुई होगी, वैसा ही कुछ मुझे लगभग एक वर्ष के अंतराल के बाद इस ब्लाग पर लौटते हुये महसूस हो रहा है। इस पूरे अरसे में आप कह सकते हैं कि मैं भी गौतम की तरह  किसी बोधिवृक्ष के नीचे बैठा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास कर रहा था। वे कुछ प्रश्न जो एक बूढे, एक रोगी और एक मृत व्यक्ति को देखकर गौतम के मन में उठे थे, मैं भी वैसे ही कुछ सवालों और इस भौतिक जगत के मायने तलाश करने का प्रयास कर रहा था। हम एक समय आने पर ब्याह दिये जाते हैं, या यूं कहें हमारे व्याकुल मन और कुछ अपने भविष्य पर गौर करके परिजन यह कदम उठाते हैं। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि एक क्रमवार तरीके से चली जा रही दुनिया की इस रीत पर सवाल उठाने का किसी प्रबुद्ध जन का साहस नहीं हुआ। बच्चों का जन्म लेना, युवा होना, विवाह करना, कुछ और बच्चों का सृजन करना, मौत को अंगिकार करना। कुछ लोग जिनमें प्रबुद्ध जनों से लेकर अनपढ तक शामिल हैं इस पूरी प्रक्रिया की ऐसे पैरवी करते हैं कि मालूम पडता है ईसा जो पृथ्वी पर जीवन का विस्तार करने की जि