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Showing posts from July, 2011

नेरूदा से दानिलोव तक

पाठक मित्रों, दिल का भारीपन और बोझ वाकई बेहद कश्टकारी अवस्था है। लेकिन ऐसे समय में भी इंसान नेरूदा की ओर देख सकता है, उनके विशाद गीतों से सहारा पा सकता है। नेरूदा ने इस भयंकर वक्त में भी प्रेम के विभिन्न स्वरूपों को आनंद उठाया, उसके उल्लास में, उसके विशाद में गीत, सोनेट और कविताएं लिखीं। विचारधारा की बात अलग है, आप अपनी विचारधारा खुद चुनते हैं पर कुछ चीजें कुछ वर्ग ऐसे होते हैं कि आप न चाहते हुए भी उनमें शामिल हो जाते हैं। कोई ऐसा शख्स ढूंढ कर दिखाइये जो प्रेम से नफरत करता हो, या फिर ऐसा न चाहता हो कि कोई तो उससे भी प्रेम करे, मेरे ख्याल से ऐसे इंसान विरले ही मिलें। लेकिन अफसोस हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां प्रेम का सर्वथा अभाव है। बेहद प्रगतिशील विचारों में, यूटोपियन विचार वैसे प्रेम को लेकर उदासीन तो नहीं हैं, लेकिन मेरा ऐसा मानना है जिस ‘‘आइडिया इन प्रेक्सिस’’ का उदाहरण अक्सर दिया जाता है, मार्क्स से लेकर हम तक सभी लोग इसी बात को कहते आए हैं कि महज विचार बन जाने से समाज बदल नहीं जाता, इसे बदलने के लिए मैदान में डटना पडता है, पुरानी व्यवस्था को ध्वस्त करना होता है। लेकिन प्रेम की