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नेरूदा से दानिलोव तक

पाठक मित्रों, दिल का भारीपन और बोझ वाकई बेहद कश्टकारी अवस्था है। लेकिन ऐसे समय में भी इंसान नेरूदा की ओर देख सकता है, उनके विशाद गीतों से सहारा पा सकता है। नेरूदा ने इस भयंकर वक्त में भी प्रेम के विभिन्न स्वरूपों को आनंद उठाया, उसके उल्लास में, उसके विशाद में गीत, सोनेट और कविताएं लिखीं।
विचारधारा की बात अलग है, आप अपनी विचारधारा खुद चुनते हैं पर कुछ चीजें कुछ वर्ग ऐसे होते हैं कि आप न चाहते हुए भी उनमें शामिल हो जाते हैं। कोई ऐसा शख्स ढूंढ कर दिखाइये जो प्रेम से नफरत करता हो, या फिर ऐसा न चाहता हो कि कोई तो उससे भी प्रेम करे, मेरे ख्याल से ऐसे इंसान विरले ही मिलें। लेकिन अफसोस हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां प्रेम का सर्वथा अभाव है। बेहद प्रगतिशील विचारों में, यूटोपियन विचार वैसे प्रेम को लेकर उदासीन तो नहीं हैं, लेकिन मेरा ऐसा मानना है जिस ‘‘आइडिया इन प्रेक्सिस’’ का उदाहरण अक्सर दिया जाता है, मार्क्स से लेकर हम तक सभी लोग इसी बात को कहते आए हैं कि महज विचार बन जाने से समाज बदल नहीं जाता, इसे बदलने के लिए मैदान में डटना पडता है, पुरानी व्यवस्था को ध्वस्त करना होता है। लेकिन प्रेम की बात करिए जनाब, मौजूदा समाज में तो प्रेम बडा अनबेलेंस्ड सा है।
कुछ बरस पहले एक फिल्म देखी थी, ‘‘एनेमी एट द गेट्स’’, कहने को कुछ लोग एक्शन फिल्म कहकर इसे वाहियात करार दे सकते हैं। लेकिन इस फिल्म की एक बात जो मुझे चुभ गई, वह इसका अंत था। फिल्म के केन्द्र में सोवियत सेना का एक अफसर दानिलोव, सोवियत स्नाइपर वसीली और एक युवा सैन्य रेडियो आपरेटर तान्या हैं। दानिलोव तान्या को बेहद पसंद करता है, पर तान्या और वसीली को आपस में प्रेम हो जाता है। फिल्म के अंत में दानिलोव वसीली से एक बात कहता है, ‘‘साथी, इस समाज में हमेशा लोग गरीब और अमीर के रूप में बंटे रहेंगे, बेशक उनके स्वरूप बदल जाएं, कोई प्यार में अमीर रहेगा तो कोई इस मर्ज में गरीब’’, जी हां वाकई प्यार और साम्यवाद का तब तक तो कोई मेल नहीं हो सकता जब तक पूरी तरह से आदर्श समाज जिसे मार्क्स ने समाजवाद का अंतिम चरण करार दिया है नहीं बन जाता।
नेरूदा ऐसे कवि थे जिन्होंने प्रेम के अभाव से लेकर उसके उल्लास और आनंद सभी को देखा जाना था। इस पर उन्होंने बहुत कुछ लिखा भी है, खैर इस समय अधिक बोल पाने या लिख पाने की स्थिति में नहीं हूं इसलिए फिलहाल इस कथ्य को आज यहीं पर विश्राम देते हैं, शेश कल लिखूंगा। आप लोगों से बतिया कर कुछ तो दिल का भारीपन कम हुआ।
खैर कुछ दोस्तों के लिए अगर पसंद आए तो, फ्योदोर दोस्तोयेवस्की के उपन्यास ‘‘रजत रातें’’ के पहले पन्ने से उधार ली गईं तुर्गेनेव की चंद पंक्तियां छोडे जा रहा हूं, अंग्रेजी से इनका अनुवाद मैने खुद किया है, कोई कमी रह गई हो तो क्षमाप्रार्थी हूं।

‘‘और क्या यही था उसकी किस्मत में बदा,
सिर्फ जीवन के एक क्षण के लिए बस,
कि वह आ पाया तुम्हारे करीब,
या फिर यही था शुरू से लिखा,
सिर्फ चंद क्षणो के लिए रह पाना,
तुम्हारे हृदय के भीतर’’

दोस्तों मेरे दिल को बडे हौले से तोडते हुए किसी शख्स ने जिसका मैं आज भी पहले जितना ही आदर करता हूं, कुछ समय पूर्व कहा था ‘‘प्रेम एक अनवरत प्रक्रिया है जो जिंदगी भर चलती रहती है, तुम्हारे लिए कुछ बेहतर भविश्य में प्रतीक्षा जरूर कर रहा होगा और उसके मिलने के बाद तुम मुझे पूरी तरह से भूल जाओेगे’’ पर अफसोस राजू जोकर और कमिसार दानिलोव जैसे किरदार इस अनवरत प्रक्रिया में हाशिये पर खिसक जाते हैं, खैर उनकी फिक्र करके किसी को हासिल भी क्या होना है। प्रेम बालीवुड और कुछ चतुर लोगों की बपौती है इसमें आप.हम जैसों को क्या दखल। मेरी कोशिश रहेगी कि आने वाले कुछ समय में इसी जगह इसी आलेख का विस्तार करता जाउं और दूसरे कई लेखकों , कवियों, गीतकारों, कहानीकारों की पसंदीदा रचनाओं को भी पीडीएफ के माध्यम से यहां आपके साथ बांटू।

चित्र- पाब्लो नेरूदा, शायद चीन की महान दीवार पर खडे हुए




माफ कीजिएगा बातें अधूरी छोड कर भाग गया था, समय सब से बडा मरहम है, सदियों से यही तो एकमात्र सहारा रहा है हम जैसे लोगों का। खैर छोडिये मैं अब रात को आपके लिए एक गीत यहां छोडकर जा रहा हूं, इसे सुनिए और आनंद लीजिए। वर्तमान साहित्य पत्रिका के एक पुराने अंक में एक बार एक मर्मस्पर्शी कहानी छपी थी, उसे तलाश रहा हूं जल्द ही आपके सामने इसी जगह पर पढने के लिए वह उपलब्ध रहेगी।

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