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लंबा वनवास

इल्या रेपिन की पेंटिग ''ब्राइड''
एक लंबे वनवास के बाद राम को अयोध्या नगरी लौट कर जो अनुभूति हुई होगी, वैसा ही कुछ मुझे लगभग एक वर्ष के अंतराल के बाद इस ब्लाग पर लौटते हुये महसूस हो रहा है।
इस पूरे अरसे में आप कह सकते हैं कि मैं भी गौतम की तरह  किसी बोधिवृक्ष के नीचे बैठा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास कर रहा था। वे कुछ प्रश्न जो एक बूढे, एक रोगी और एक मृत व्यक्ति को देखकर गौतम के मन में उठे थे, मैं भी वैसे ही कुछ सवालों और इस भौतिक जगत के मायने तलाश करने का प्रयास कर रहा था।
हम एक समय आने पर ब्याह दिये जाते हैं, या यूं कहें हमारे व्याकुल मन और कुछ अपने भविष्य पर गौर करके परिजन यह कदम उठाते हैं। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि एक क्रमवार तरीके से चली जा रही दुनिया की इस रीत पर सवाल उठाने का किसी प्रबुद्ध जन का साहस नहीं हुआ। बच्चों का जन्म लेना, युवा होना, विवाह करना, कुछ और बच्चों का सृजन करना, मौत को अंगिकार करना। कुछ लोग जिनमें प्रबुद्ध जनों से लेकर अनपढ तक शामिल हैं इस पूरी प्रक्रिया की ऐसे पैरवी करते हैं कि मालूम पडता है ईसा जो पृथ्वी पर जीवन का विस्तार करने की जिम्मेदारी सौंप कर गये थे  उसका अक्षरश पालन करने का बीडा इन्होंने ही उठाया हुआ है। माफ कीजियेगा पर कभी न कभी तो आपके जीवन में ऐसा पल भी आया होगा जब आपका मन प्रेम में तो डूबने का इच्छुक होगा पर इस पूरी मशीनी प्रक्रिया से ऊब सी हो गई होगी।
घरेलू महिलायें, घरेलू पुरुष, उनके पीछे दस दस संतानो की फौज, बगल में रह रहा कुत्ते का परिवार, बीस तीस पिल्लों की फौज जिसका कोई भविष्य नहीं। इस सब को देखकर ऊब से ज्यादा घिन्न आती है। हमारे समाज का लक्ष्य कुत्तों की तरह केवल संख्‍यावाचक नहीं है बल्कि हमें प्रयास करना चाहिये कि जीवन हर वक्त अनुराग और उल्लास से भरा हो, विवाह उसी से किया जाये जिसकी आवृत्ति आपसे मिलान खाती हो और जिसे देखकर आप अनंत तक पुलकित रह सकने को तैयार हों। संतान बेशक एक हो लेकिन आप उसे वे सब गुण दे सकें जो उसे मानवसमाज को प्रगतिपथ पर ले जाने के लिये तैयार करते हों।
अपन का तो यही मानना है, आप लोग क्या सोचते हैं उस पर टिप्पणी दें।

Comments

  1. Welcome back Pallavji...
    bahut accha laga aapko lauta dekhkar.
    insaan ka paida hona,aur fir umr ke har
    padaav ko paar karna...aur har padaav ke
    saath ki gathividhiya..pehle shiksha,naukri,
    vivah,bacche..aur fir sabki jimmedariyan nibhana
    fir avkaash prapt karna aur fir ek din is duniya se vida hona...taaki ek naye rup me punh dharti par avtarith hona...ye sab krambadh aur ek lay me chalta rahe yahi theek hain.
    Haan ye baat sahi hain hame vivah ussi se karna chahiye jisse humara man mile aur vichaaro me jyaada utaar-chdhaav na ho.aaj-kal maa baap baccho ki jabardasti shaadi nahi karva dete hain.aaj-kal sab ek ya do sntaan hi chahte hain.
    aur har abhibhavak apne baccho ko acche sanskaar dena chahte hain.

    ReplyDelete
  2. Pallav ji
    mere blog par visit kare

    ReplyDelete

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