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Showing posts from June, 2009

बाजार में स्वागत है

जी हां, यह बाजार है। एक ऐसा बाजार जहां जेब में अगर पैसा है तो रोटी से लेकर डिग्री तक और मोहब्बत से लेकर नाम, शोहरत और मान-सम्मान तक खरीद लीजिए। अगर पास में पैसा है तो अपने कचरे को भी एडवरटाइज़ कर किसी को भिड़ा दीजिए, जी हां यह बाजार है, और यहां आपका स्वागत है। वैसे दिनकर ने ठीक ही कहा है, कि पैसे के दम पर तुम बाजार से नाक भी खरीद सकते हो। जी हां, दुकानदार कहते हैं कि वे सामान इसलिए बेच रहे हैं, क्योंकि लोग उसे खरीद रहे हैं। और लोग उसे इसलिए खरीद रहे हैं क्योंकि योग्यता की जगह उनके पास पैसे बरस रहे हैं। आज कोई युवक किसी युवती का प्यार इसलिए खरीद पाता है क्योंकि वो उसे मारूती में घुमा पाने की हैसियत रखता है। बहुत से लायक युवक नौकरी के लिए मारे-मारे फिरते हैं, लेकिन नौकरी उसे ही मिलती है जो इसे खरीद पाता है। अभी सुनने में आ रहा है कि गुलशन कुमार की बेटी तुलसी कुमार अपना नया एल्बम, लव हो जाए, लेकर आ रही हैं। वही प्यार पर लिखे गये घिसेपिटे गाने, लेकिन हम इसे भी खरीदेंगे, और यही बाजार का कमाल है। यह जो बाजार है न, वो एक ताश के पत्तो की दीवार की तरह है, एक पत्ता गिरा नहीं कि पूरी की पूरी द

हिंदुस्तानी तालिबान

मैं और आनंद जी इन दिनों दफ्तर से जरा झुटपुटा होते ही निकल लेते हैं। क्या करें आनंद जी की शिफ्ट जल्दी ही ओवर हो जाती है, तो मेरे साथ ही निकल चलते हैं। नुक्कड़ के दो-चार रेहड़ी वाले दुकानदारों से उन्होने दोस्ती कर रखी है। उस दिन भी हम ऐसे ही एक रेहड़ी वाले के पास जाकर खड़े हो गए। बातचीत का सिलसिला चल निकला। बस में चढ़ने का टाइम हो रहा था, तो बातों का रुख भी बसों की ओर ही मुड़ गया। बस के हर पहलू, डीटीसी के डिसइंवेस्टमेंट, भीड-भड़क्का, ब्लूलाइन वालों की दादागिरी, हर पहलू पर बातें हुईं। वैसे रेहड़ी वाले भाईसाहब बहुत ही विद्वान जान पड़ रहे थे। अचानक से उन्होने हम दोनो का ध्यान बसों में महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की ओर खींचने का प्रयत्न करा। मुझे उन प्रोग्रेसिव माईंडेड भाईसाहब की सोहबत में बडे़ हर्ष की अनुभूति हो रही थी। हो भी क्यों न, आखिर महिलाओं के प्रति पुरुषों की ऐसी उजली सोच बहुत कम ही देखने को मिल पाती है। लेकिन न मालूम अचानक से भाईसाहब को क्या हुआ, उन्होने ब्राहमणवाद के परम श्लोकों सा वज्रपात करते हुए कहा कि, महिलाओं के साथ जो कुछ भी होता है उसके लिए वे खुद ही तो जिम्मेदार हैं, कि

बच्चे बेचारे

बहुत बार ऐसा होता है, कि जब हम बहुत बड़े हो जाते हैं तो बच्चों से हमें चिढ़ होने लगती है। हम बच्चों से इतना चिढऩे लगते हैं कि डांट, फटकार और लताड़ शुरु हो जाती है। लेकिन न जाने क्यों इस सब में हम यह भूल जाते हैं कि किसी न किसी युग के बच्चे हम भी हैं।     हां बच्चे जब चीखते पुकारते हैं तो सबसे ज्यादा चिढ़ मुझे ही होती है, लेकिन सच बताऊं, जब बच्चे दुलार करते हैं न तो, जीवन का सबसे खूबसूरत पल वो लगता है। मासूम सी खिलखिलाहट चेहरे पर लिए , आकर बस आपसे  लिपट जाते हैं, कभी आपकी नाक को रगड़ते हैं, तो कभी बस गले में झूलना चाहते हैं।     जब लिखने बैठा तो सोचा था, कि अपनी बात को लीक से भटकने नहीं दूंगा, लेकिन क्या करूं भई पत्रकार हूं, चारों ओर दिमाग के घोडे दौड़ते रहते हैं। चलिए उन बच्चों का तो ठीक है, जो महलों में पले हैं, उन्हे तो सिर्फ इसलिए डांट पड़ती है कि वे अपने समाज के सलीके सीख लें। लेकिन उन बच्चों का क्या जिन्होने कभी फुटपाथ और झोंपड़े की आगे की दुनिया का सोचा ही नहीं। जिन्होने तो शायद बचपन नामक चीज़ को ठीक से पहचाना ही नहीं होता। बस वे तो सोचने की उम्र तक आते आते, पेट की खातिर

उफ यह बस का सफर

वैसे कुछ ऐसी ही कहानी मुंबई वाले अपनी लोकल ट्रेनो के बारे में भी कहते होंगे। दिल्ली में बस का सफर करना एक दिलेरी का काम है। अब तो बीमा कंपनियां भी दिल्ली की बसों में सफर करने वालों का बीमा बंद करने का मन बना रही हैं। अगर आप फिर भी बस में सफर करने के लिए ललचा रहे हैं, तो करिए भई किसने रोका है, लेकिन अपने रिस्क पर। बस में सफर करने पर क्या मालूम चोर इस टैक्नीक से चोरी करें कि मोबाइल वगैरह तो छोटी चीज़, आपके बदन से कपड़े तक उतार लिए जाएं और आपको पता न लगे। हो सकता है ड्राइवर, अब स्टॉप आने पर बस ही न रोकें, और आप बस में सफर के साथ-साथ लॉग जम्प के भी चैंपियन हो जाएं। या ऐसा भी संभव है कि बस के दरवाजों पर लटक कर चढऩे वाली भीड़ जगह न मिलने पर अब बस की छत पर ही सफर करना शुरु कर दे। हो सकता है कि किलर-लाईन सवारी भरने की होड़ में कुछ एक आध दर्जन लोगों को और कुचल दे। पुलिस वाले इन दिनों पूरी मुस्तैदी से बस वालों का हुकुम बजा रहें हैं। बस वाले चाहे बस को कितना ही भर लें, उनका कोई चालान नहीं कट सकता, लेकिन भूल से भी कोई टैक्सी वाला, सवारी को अदब के साथ सीट पर बैठा कर ले गया, वो सलाखों के अंदर प