वैसे कुछ ऐसी ही कहानी मुंबई वाले अपनी लोकल ट्रेनो के बारे में भी कहते होंगे। दिल्ली में बस का सफर करना एक दिलेरी का काम है। अब तो बीमा कंपनियां भी दिल्ली की बसों में सफर करने वालों का बीमा बंद करने का मन बना रही हैं।
अगर आप फिर भी बस में सफर करने के लिए ललचा रहे हैं, तो करिए भई किसने रोका है, लेकिन अपने रिस्क पर। बस में सफर करने पर क्या मालूम चोर इस टैक्नीक से चोरी करें कि मोबाइल वगैरह तो छोटी चीज़, आपके बदन से कपड़े तक उतार लिए जाएं और आपको पता न लगे। हो सकता है ड्राइवर, अब स्टॉप आने पर बस ही न रोकें, और आप बस में सफर के साथ-साथ लॉग जम्प के भी चैंपियन हो जाएं। या ऐसा भी संभव है कि बस के दरवाजों पर लटक कर चढऩे वाली भीड़ जगह न मिलने पर अब बस की छत पर ही सफर करना शुरु कर दे। हो सकता है कि किलर-लाईन सवारी भरने की होड़ में कुछ एक आध दर्जन लोगों को और कुचल दे।
पुलिस वाले इन दिनों पूरी मुस्तैदी से बस वालों का हुकुम बजा रहें हैं। बस वाले चाहे बस को कितना ही भर लें, उनका कोई चालान नहीं कट सकता, लेकिन भूल से भी कोई टैक्सी वाला, सवारी को अदब के साथ सीट पर बैठा कर ले गया, वो सलाखों के अंदर पहुंचा दिया जाता है।
यह कोई नितांत कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि यह तो दूरदर्शिता है। जिस रफ्तार से डीटीसी का विनिवेश कर, ब्लूलाईन के लिए सारे द्वार खोल दिए गए, अब उससे और न जाने कितने समय तक हमे जूझना पड़े यह तो बस नेता ही बेहतर जानें। बसों में सफर करना एक जरूरत कम मजबूरी ज्यादा बन चुकी है, तब तक तो, जब तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का कोई और बेहतर विकल्प मौजूद नहीं होता।
delhi me bas 2-3 baar bus me safar kiya tha,yun kahiye ki bus me safar nahi,bas suffer kiya tha maine...sahi hi keh rahe hai aap...delhi ki traffic vyavastha baaki maamlo me kaafi achhi hai,par idhar dhyaan dene ki zaroorat hai
ReplyDeletewww.pyasasajal.blogspot.com
वैसे दिल्ली वालों को इस बात का बहुत नाज है की वे ऐसी बसों में चलने के एक्सपर्ट हैं... प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद साथी...
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