जी हां, यह बाजार है। एक ऐसा बाजार जहां जेब में अगर पैसा है तो रोटी से लेकर डिग्री तक और मोहब्बत से लेकर नाम, शोहरत और मान-सम्मान तक खरीद लीजिए। अगर पास में पैसा है तो अपने कचरे को भी एडवरटाइज़ कर किसी को भिड़ा दीजिए, जी हां यह बाजार है, और यहां आपका स्वागत है। वैसे दिनकर ने ठीक ही कहा है, कि पैसे के दम पर तुम बाजार से नाक भी खरीद सकते हो। जी हां, दुकानदार कहते हैं कि वे सामान इसलिए बेच रहे हैं, क्योंकि लोग उसे खरीद रहे हैं। और लोग उसे इसलिए खरीद रहे हैं क्योंकि योग्यता की जगह उनके पास पैसे बरस रहे हैं। आज कोई युवक किसी युवती का प्यार इसलिए खरीद पाता है क्योंकि वो उसे मारूती में घुमा पाने की हैसियत रखता है। बहुत से लायक युवक नौकरी के लिए मारे-मारे फिरते हैं, लेकिन नौकरी उसे ही मिलती है जो इसे खरीद पाता है। अभी सुनने में आ रहा है कि गुलशन कुमार की बेटी तुलसी कुमार अपना नया एल्बम, लव हो जाए, लेकर आ रही हैं। वही प्यार पर लिखे गये घिसेपिटे गाने, लेकिन हम इसे भी खरीदेंगे, और यही बाजार का कमाल है। यह जो बाजार है न, वो एक ताश के पत्तो की दीवार की तरह है, एक पत्ता गिरा नहीं कि पूरी की पूरी द...