
हिंदी सिनेमा ने युवाओं के पसंदीदा इस टॉपिक को शायद पूरी शिद्धत के साथ कवर किया है। लेकिन यह विषय कुछ ऐसा है न, कि हर नयी कहानी अपने आप में अनुपम और नयी सी होती है। अब मुझे ही ले लीजिये, कभी सोचा न था, कि प्यार एक सौंधी सी हवा का झोंका बन जीवन में आयेगा! प्यार आया, और आकर शायद चला भी गया, पता ही नहीं चला कब। अभी भी हर पल प्यार भरी यादें, उन प्यारे मधुर पलों की यादें, सुबह के आसमान पर धूप की चित्रकारी की तरह लगती हैं, लगता ही नही कि जिसे इतनी शिद्धत से चाहा था, अब वो इतना दूर हो चुका है। या शायद नही भी, क्योंकि इंसान सिर्फ एक इंसान होता है, वो दूसरे के मन को अगर इतनी ही आसानी से पढ़ लेता, तो शायद बहुत सी समस्याएं तो पैदा होने से पहले ही सुलट जातीं। लेकिन नहीं, इंसान सिर्फ एक इंसान ही नही होता है, उसके लिये प्रेम में अक्सर निर्मलता जैसे आयाम नहीं रहते, बल्कि, उस प्रेम को न जाने किन किन तरह अजीब अजीब चीजों से जोड़ कर देखा जाने लगता है, उसे उसी सांचे में ढालने की कोशिश की जाती है, जिस सांचे में ढालकर इस घृणित समाज ने उन्हे इतना बड़ा किया है।
दोस्तों को, साथियों को अक्सर बोलते सुनता हूं कि ``उम्मीद एक जिन्दा शब्द है´´, सोचता था, आखिर कैसे एक उम्मीद, एक बेहतर कल की आस, भी सजीव हो सकती है, लेकिन जब इसे खुद पर ही, और अपने जीवन पर ही घटता पाया, तो यह शब्द सजीव सा, जीवित सा प्रतीत होने लगा। कभी ऐसा लगता था कि ``वो´´ बहुत दूर है, और आज जब उसकी नजदीकी एक सजीव हकीकत बन चुकी है, तो न चाहते हुये भी खुद को थमा हुआ पाता हूं। आने वाले कल न जाने कौन से विस्तृत क्षितिजों का आगमन हो, पर कहीं न कहीं जब तक दो दिल धड़क रहे हैं, जब तक उनकी धड़कन, एक दूसरे का स्पंदन महसूस कर पा रही हैं, तब तक ``उम्मीद´´ एक जिन्दा शब्द है।
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