प्यार, जिस शब्द को शायद हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं, हालांकि उम्र के अलग अलग पड़ावों के साथ इस शब्द के मायने बदलते जाते हैं। बचपन में मां की गोद, और उसके लाड़-दुलार से बढ़कर शायद कुछ नही लगता। कुछ और बड़े होते हैं तो, संगी साथियों के याराने के चलते न जाने पहाड़ जैसी ज़िन्दगी के कितने सारे टीले हम यूं ही चढ़ जाते हैं। जब युवावस्था में कदम रखते हैं, तो दिल एक ऐसे साथी की तलाश करने लगता है, जिसके पास रहकर, जिससे बातें करके सुकून सा मिलता हो, और जिसके साथ न होने से खालीपन और नीरवता सी दिल में सुलगती हो। और बड़े-बूढ़ों के मुंह से हमने उम्र के उस पड़ाव के भी किस्से सुने हैं, जब प्रेम अपनी उच्च अवस्था में होता है, उसका स्वरूप परस्पर गहरा हो चुका होता है। अभी बुढ़ापा बहुत दूर है, और बचपन की स्मृतियां इतनी स्पष्ट नहीं हैं, याराने की चर्चा किसी दिन और करेंगे, फिलहाल प्यार के उस स्वरूप को आपसे बांटना चाहता हूं , जिसे मै हर वक्त अपने करीब महसूस करता हूं।हिंदी सिनेमा ने युवाओं के पसंदीदा इस टॉपिक को शायद पूरी शिद्धत के साथ कवर किया है। लेकिन यह विषय कुछ ऐसा है न, कि हर नयी कहानी अपने आप में अनुपम और नयी सी होती है। अब मुझे ही ले लीजिये, कभी सोचा न था, कि प्यार एक सौंधी सी हवा का झोंका बन जीवन में आयेगा! प्यार आया, और आकर शायद चला भी गया, पता ही नहीं चला कब। अभी भी हर पल प्यार भरी यादें, उन प्यारे मधुर पलों की यादें, सुबह के आसमान पर धूप की चित्रकारी की तरह लगती हैं, लगता ही नही कि जिसे इतनी शिद्धत से चाहा था, अब वो इतना दूर हो चुका है। या शायद नही भी, क्योंकि इंसान सिर्फ एक इंसान होता है, वो दूसरे के मन को अगर इतनी ही आसानी से पढ़ लेता, तो शायद बहुत सी समस्याएं तो पैदा होने से पहले ही सुलट जातीं। लेकिन नहीं, इंसान सिर्फ एक इंसान ही नही होता है, उसके लिये प्रेम में अक्सर निर्मलता जैसे आयाम नहीं रहते, बल्कि, उस प्रेम को न जाने किन किन तरह अजीब अजीब चीजों से जोड़ कर देखा जाने लगता है, उसे उसी सांचे में ढालने की कोशिश की जाती है, जिस सांचे में ढालकर इस घृणित समाज ने उन्हे इतना बड़ा किया है।
दोस्तों को, साथियों को अक्सर बोलते सुनता हूं कि ``उम्मीद एक जिन्दा शब्द है´´, सोचता था, आखिर कैसे एक उम्मीद, एक बेहतर कल की आस, भी सजीव हो सकती है, लेकिन जब इसे खुद पर ही, और अपने जीवन पर ही घटता पाया, तो यह शब्द सजीव सा, जीवित सा प्रतीत होने लगा। कभी ऐसा लगता था कि ``वो´´ बहुत दूर है, और आज जब उसकी नजदीकी एक सजीव हकीकत बन चुकी है, तो न चाहते हुये भी खुद को थमा हुआ पाता हूं। आने वाले कल न जाने कौन से विस्तृत क्षितिजों का आगमन हो, पर कहीं न कहीं जब तक दो दिल धड़क रहे हैं, जब तक उनकी धड़कन, एक दूसरे का स्पंदन महसूस कर पा रही हैं, तब तक ``उम्मीद´´ एक जिन्दा शब्द है।
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