वैसे लिखना बहुत दिनों से ही चाह रहा हूं, कॉम्नवैल्थ के ऊपर बहुत सा विक्षोभ प्रकट करना था, फिर आई रामलीला तो उस पर भी एक अच्छा आलेख तैयार करने का सोचा था, दिवाली पर भी कहने के लिए बहुत कुछ था, लेकिन हाय रे आलसीपन बीते दो महीने से कुछ भी नहीं लिखा, एक शब्द भी नहीं टिपटिपाया। शीतल जी भी अक्सर कुछ अच्छा पढने की चाह में मेरे ब्लाग का चक्कर लगाती थीं, लेकिन निराशा ही उनके हाथ लगती थी। लेकिन वे निरंतर मुझे लिखने के लिए कहती रहती थीं। चलिए इस लंबी आलस से भरी हुई चुप्पी के बाद कुछ बात करते हैं, भारीभरकम मुदृदों को कुछ और पल आराम के दे देते हैं। चलिए आज के पूरे दिन की बात करते हैं। ज्यों-ज्यों धरती हमारी सूरज से दूरियां बढाने में जुटी है, त्यों-त्यों जिंदगी की तरह दिन भी कुछ ज्यादा ही सर्द महसूस होने लगे हैं। सर्दी के कपडे बाहर निकलने को तैयार, और हाफ बाजू बुशर्ट को अगले साल तक के लिए विदा। सुबह आज इन्ही जरूरी कामों के साथ हुई। वैसे इन दिनों किताबों से ज्यादा फिल्मों से दोस्ती कर रखी है, साथी कोंपल ने कोई दो-एक साल पहले एक फिल्म क्लब बनाने का जिक्र किया था, वो तो बन नहीं पाया...